आखिर कब एक होगी युवा कांग्रेस- अज्ञानी की कलम से

उत्तराखंड कांग्रेस के मुखिया करन माहरा ने आते ही एक द्वितीयक श्रेणी का नेतृत्व खड़ा करने पर पुरजोर ध्यान दिया। परन्तु उनकी ही युवा कांग्रेस आपसी अंर्तकलह से जूझ रही है, और युवा कांग्रेस की गुटबाजी समाप्त होने का नाम नहीं ले रही। एक तरफ जहाँ प्रदेश अध्यक्ष सुमित्तर भुल्लर खुद को सक्षम दिखाने का पुरजोर कोशिश कर रहे है वहीं उन्हें चुनौती का सामना खुद के घर में करना पड़ रहा है। हालाँकि यह सुमित्तर भुल्लर का दूसरा कार्यकाल है परन्तु उनके पहले कार्यकाल में ही युवा कांग्रेस तीन गुटों में बँट गया था। एक गुट को सुमित्तर भुल्लर ,दूसरे गुट को उस समय के देहरादून जिला अध्यक्ष भूपेंद्र नेगी , और तीसरे गुट को विनीत प्रसाद भट्ट उर्फ़ बंटू और सोनू हसन का माना जाता था। हालाँकि भूपेंद्र नेगी अपने समर्थको के उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाए इसलिए अब गुट मुख्यतया दो भागो में बँट गया।

सुमित्तर भुल्लर ने दूसरा कार्यकाल सम्हाला और अंदरूनी कलह एक बार फिर सामने आगया। विनीत प्रसाद भट्ट को पूर्व एन ऐस यु आयी के प्रदेश अध्यक्ष मोहन भंडारी का साथ मिला और ए धड़ और मजबूत हो गया। जिसका प्रभाव इस बार के एन ऐस यू आयी के डी ए वी कालेज के चुनाव में मिला हालाँकि मोहन भंडारी ने एन ऐस यू आयी के साथ में थे लेकिन विनीत प्रसाद भट्ट कैम्प ने अपना व्यक्तिगत कैंडिडेट उतार कर अपने ताकत का एहसास कराया। भूपेंद्र नेगी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह मिली और वो प्रदेश युवा राजनीती के हासिये पर चले गए और उनके पुराने साथियों ने भी अपनी अलग अलग राह पकड़ ली।

इन सब के बीच पूर्व राष्ट्रीय सचिव वैभव वालिया ने किंग मेकर की भूमिका निभाई और कई ऐसे निर्णय लिए गए जो भट्ट गुट को पसंद नहीं थे

प्रभारियों ने भी भट्ट कैम्प का साथ दिया और अंतरकलह बढ़ते गए। चाहे वो महानगर अध्यक्ष का मनोनयन हो या देहरादून जिला अध्यक्ष का सारे निर्णयों पर तत्काल रोक लग गये।

कई गुटों में बंटी युवा कांग्रेस में अंतर कलह इस प्रकार बढ़ गयी की अच्छे प्रवक्ता , समर्पित कार्यकर्ताओं ने स्वयं की अनदेखी होता देख निराष होकर अलग राह पकड़ लिय। अब युवा कांग्रेस के कार्यकर्त्ता बड़े नेताओं की तरफ बढ़ चले हैं। उत्तराखंड के नए प्रभारी के आगमन पर साफ साफ दिख रहा था की जो फोटो जीवी थे वो सिर्फ फोटो खिचाने में लगे थे। अलग अलग रह कर सबने स्वागत किया लेकिन जो एकता दिखनी चाहिए वो नहीं दिखी। आज कल युवा कांग्रेस के कार्यकर्त्ता निराश और हतास से प्रतीक होते हैं। एक तरफ तो बड़े नेताओं के आगमन पर जहां शीर्ष नेतृत्व युवा कांग्रेस और एन ऐस यु आयी की तरफ नज़ारे उठाकर देखती है वही युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओ के तबज़्ज़ो न मिलने पर कार्यकर्त्ता हतास और निराश नजर आता है। युवा कांग्रेस का कार्यकर्त्ता या तो तभी दीखता ही जब राष्ट्रीय स्तर का कोई नेता आता ही या किसी कार्यकर्म में भीड़ जुटाना होता है।

कुछ चुनिंदा पदाधिकारिओं जिन्होंने चरण स्पर्श की परंपरा के अनुशाषित रूप से किये है वो या तो अच्छे पद पर चले गए या मुख्यधारा में प्रवेश कर गए। बाकि के कार्यकर्त्ता अनदेखी की वजह से निराश होकर वापस हो गए। युवा कांग्रेस प्रदेश नेतृत्व कही न कही कोई न कोई ऐसी चूक कर रही है जिससे की युवा उनसे दूर होते जा रही है ,कही न कही अनुशाशन की कमी भी मुख्य मुद्दा है। एक तरफ भारतीय युवा मोर्चा जहाँ अनुशासित रूप से अपने कार्यकर्मो का सञ्चालन कर रही ही युवाओं के जोड़ने में लगी ही वहीं युवा कांग्रेस निष्फल साबित हो रही हैं।

अब प्रश्न यहाँ यह है की आंतरिक कलह से जूझ रही युवा कांग्रेस क्या प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा जी के सपनो सपनो के साकार कर पायेगी ,

क्या अनुशाषित भारतीय युवा मोर्चा के युवाओं से मुकाबला कर पाएगी या आपसी अंतरकलह में खुद के समाप्त कर लेगी यह एक यक्ष प्रश्न है?

” अज्ञानी की कलम से “

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